पल्लविका नर्सरी- 25 वर्षो की यात्रा

पल्लविका नर्सरी का जन्म 15 जून 1992 को प्रिय बाबूजी की प्रेरणा से दो भाईयों कृष्ण ठुकरालबलदेव ठुकराल द्वारा महज आधा एकड़ भूभाग पर हुआ था। तब आमजन का मत था कि इस तरह का प्रयास हमारे क्षेत्र में सफल नही हो सकता। लगभग हर व्यक्ति इस सवाल पर प्रश्न चिन्ह लगाता था। बड़े भाई कृष्ण ठुकराल ने पन्त नगर कृषि विश्वविद्यालय से वर्ष 1986 में B.Sc.Ag & Ah.(बी0एस0सी-ए0जी0 व ए0एच0) व छोटे भाई बलदेव ठुकराल ने भी पंतनगर विश्वविद्यालय से 1992 में उद्यान विभाग से M.Sc.Ag.(Horti.) की उपाधि प्राप्त की। पिताजी की भी इच्छा थी पर धन के अभाव व समाज के रूप को देखकर विचलित व चिंतित हो जाते थे व कहते थे कि जोखिम नहीं ले सकते। विश्व विद्यालय के गुरुजनों का पूरा सहयोग था व उनका कहना था कि आय लगभग 4 वर्षों के बाद ही शुरू हो पायेगी। धुन के पक्के दोनों भाईयों ने ठान लिया कि नर्सरी की स्थापना तो करनी ही है, शुरू हुआ मात्र वृक्षों के संकलन का सिलसिला। आम की विभिन्न प्रजातियों का रोपण वर्ष 1992 में ही कर लिया गया था तथा बाकी फल प्रजातियां शनैःशनैः पौधशाला में मात्र वृक्षों के रूप में लगती रही व पौध शाला क्षेत्र का विकास होता गया। इस पौधशाला के साथ ही नैनीताल रोड पर P.A.C.के सामने विक्रय केन्द्र की स्थापना भी की गयी, पर शुरुआती महीनो में तो ग्राहकों के इन्तजार में आँखें पथरा जाती थी, धीरे धीरे बिक्री का सिलसिला चालू हुआ।

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एक आयाम तब जुड़ा जब 1996 में श्रीराम होंडा, बगवाडा द्वारा पल्लविका नर्सरी को अपने एक लान के निर्माण का कार्य दिया गया जो की सफलता पूर्वक पूरा हुआ व इसके बाद श्री राम होंडा के सारे Horticulture Work व रखरखाव पल्ल्विका नर्सरी द्वारा किया जाने लगा जो कि आज तक अनवरत जारी है। सन 2000 में महिंद्रा एवं महिंद्रा का आगमन इस क्षेत्र के लिए एक उपलब्धि थी। जिसके लान का निर्माण व रखरखाव हमारे द्वारा किया जा रहा है।

उत्तराखण्ड बनने के बाद सरकार का ध्यान इस क्षेत्र में गया व 2005 में पल्लाविका नर्सरी को टिशू कल्चर लैब (Tissue Culture Lab) हेतू रूपये 10 लाख की राज सहायता उपलब्ध करवायी गयी। 2006 में पल्लाविका नर्सरी को हाईटेक (Hi-Tech) करने हेतू रुपये 6.5 लाख की राजसहायता उपलब्ध करवायी गयी। इन सब के साथ साथ फल पौधों का उत्पादन भी धीरे-धीरे बढ़ने लगा व उनकी आपूर्ति उत्तर प्रदेश, हरियाणा, पंजाब, हिमांचल प्रदेश, राजस्थान व मध्यप्रदेश में होने लगी तथा साथ ही N.H.B. की योजनाओं का लाभ भी नर्सरी द्वारा लिया गया। वर्ष 2006 में पल्लाविका नर्सरी में कट फ्लावर(cut-flower) के क्षेत्र में उतरने का निर्णय लिया तो सर्व प्रथम 580 वर्ग मी० में कारनेशन की परियोजना विकसित की गयी जो की वर्तमान में 12,000 वर्ग मी० ज़रबेरा, 4,000 वर्ग मी० वार्ड ऑफ पैराडाईज़ व 4,500 वर्ग मी० क्षेत्रफल पर गुलाब के कट फ्लावर के रूप में फ़ैल चुका है। इसमें से कारनेशन व वार्ड ऑफ पैराडाईज़ की इस क्षेत्र में सफलता पर वैज्ञानिक में मतभेद था पर पल्लाविका नर्सरी में इन पुष्पो को सफलता पूर्वक उगाया जा रहा है। वर्तमान में नर्सरी द्वारा लगभग 24 लाख जरबेरा, 50 हजार कारनेशन, 1 लाख गुलाब व 25 हजार वार्ड ऑफ पैराडाईज़ पुष्पों का उत्पादन किया जा रहा है। विभिन्न फल प्रजातियों के 3 लाख पौधे, 1 लाख पापलर एवं क्लोनल यूकेलिप्टिस, 2 लाख शोभाकारी पौधो का उत्पादन व वितरण किया जा रहा है।

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किसान भाईयो की संतुष्टि हेतु मौके पर बीमारियों व कीटो की पहचान एवं उनके निदान के उपाय बताये जाते है। कृषको के क्षेत्र का भ्रमण कर, मौके पर ही समस्या का निदान करने का प्रयास किया जाता है। नर्सरी द्वारा विभिन्न प्रदर्शिनियो, किसान मेले व विभिन्न कृषक गोष्ठियो में निष्ठापूर्वक योगदान दिया जाता है। विभिन्न प्रदर्शिनियो में पारितोषिक भी प्राप्त होते रहे है। पंतनगर विश्व विद्यालय के कृषि छात्रो का अध्ययन हेतु नर्सरी का भ्रमण करना हमारे लिये गर्व का विषय है। वर्तमान में उत्तराखण्ड व उ0प्र0 के सीमावर्ती जिलो के लगभग 400 पूर्ण संतुष्ट कृषको का समूह नर्सरी की अमूल्य निधि है। पल्लविका टिशू लैब (Tissue Lab) द्वारा विभिन्न प्रकार के आयातित शोभाकरी पौधो का उत्पादन व वितरण पुरे देश में किया जा रहा है।सिडकुल (SIDCUL) के 20 उद्योगों में लान निर्माण व रखरखाव का कार्य सुचारु रुप से किया जा रहा है। 0.5 एकड़ से शुरु हुआ ये सफर वर्तमान में 33 एकड़ में फैल चूका है। इन सारी उपलब्धियों का श्रेय हमारे निष्ठावान कर्मियों सहित पुरे पल्लाविका परिवार व हमारे सम्मानित ग्राहकों को जाता है।

अन्त में हम उद्यान विभाग उतराखण्ड N.H.B., पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय, सम्मानित किसान भाईयो व ग्राहकों का हार्दिक धन्यवाद अदा करना चाहते है कि बिना उनके सहयोग व आर्शीवाद से यह सम्भव नही था।